Friday, September 7, 2007

crossing over

जिन्दगी की सुबह अब ख़त्म होती जा रही है
मद्धम मद्धम जीवन के दिन चढ़्ने का आभास घेरे जा रहा है
बचपन की वोह भोर यौवन की वोह सुबह
जाने कब और कहाँ अपने निशान मानसपटल पे छोड़ के धूमिल हो गए
सुबह की लालिमा के ओझल होने के साथ जो सपने देखे थे
जो उम्मीदें बनाई थी मानो कल्पना की एक उड़ान भर बन के दूर कहीँ दिखायी देती है

यूं किन्कर्त्व्यविमुढ़ सा बैठा मैं समय के परिवर्तन का इंतज़ार करता हूँ
जो नींव इस भोर में रखी थी उसे एक मजबूत इमारत बनाना है
अपने जीवन की इस नई शुरुआत में एक नया वर्त्तमान बनाना है
भोर के सपनों को दिन के उजाले में जीवित रखना है
जिन्दगी की शाम के पहले एक उज्जवल दिन बिताना है
जिन्दगी की शाम के पहले एक उज्जवल दिन बिताना है