जिन्दगी की सुबह अब ख़त्म होती जा रही है
मद्धम मद्धम जीवन के दिन चढ़्ने का आभास घेरे जा रहा है
बचपन की वोह भोर यौवन की वोह सुबह
जाने कब और कहाँ अपने निशान मानसपटल पे छोड़ के धूमिल हो गए
सुबह की लालिमा के ओझल होने के साथ जो सपने देखे थे
जो उम्मीदें बनाई थी मानो कल्पना की एक उड़ान भर बन के दूर कहीँ दिखायी देती है
यूं किन्कर्त्व्यविमुढ़ सा बैठा मैं समय के परिवर्तन का इंतज़ार करता हूँ
जो नींव इस भोर में रखी थी उसे एक मजबूत इमारत बनाना है
अपने जीवन की इस नई शुरुआत में एक नया वर्त्तमान बनाना है
भोर के सपनों को दिन के उजाले में जीवित रखना है
जिन्दगी की शाम के पहले एक उज्जवल दिन बिताना है
जिन्दगी की शाम के पहले एक उज्जवल दिन बिताना है